Write Sanskrit Blog with Sarasvat-Niketanam ------------------------------------------------------------------UPDATED ON 5th May, 20011--------------------------------------------------------------- Media- click to view News Paper 1. Hindustan Times, 2nd May 2. Hindustan, 2nd May 3. Northern India Patrika, 2nd May 4. Northern India Patrika 1May 5. Inext 1st May 6. Amar Ujala 1st May 7. Amar Ujala Compact 1st May 8. Dainik Jagaran, 2nd May 9. Amar Ujala,2nd May 10.Daily News Activist, 2nd May 11. Amar Ujala Compact, 2nd May TV. 12. Active India TV News, 1st May 13. National News DD1, 3rd May ------------------------------------------------------------------UPDATED ON 2nd May, 20011--------------------------------------------------------------- DD 1 News 3/5/111 6:55 DD 1 News 3/5/111 6:55 Edited ------------------------------------------------------------------UPDATED ON 1st May, 20011--------------------------------------------------------------- प्रिय बन्धुवर, भारत सरकार के पूर्वशिक्षाविद् सदस्य डा० सदानन्द झा के प्रधान सम्पादकत्व में बिपिन कुमार झा द्वारा प्रकाशित ISSN 0976 – 8645 प्राप्त प्रथम त्रैमासिक संस्कृत विद्युत-शोधपत्रिका (www.jahnavisanskritejournal.com ) “जाह्नवी” के षष्ठ्म अंक का लोकार्पण रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, इलाहावाद के सचिव स्वामी निखिलात्मानन्दजी महाराज के करकमलों से 1 मई, 2011 (रविवार) को किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत वेदपाठ, गीतापाठ एवं प्रार्थना से हुई। इसके अनन्तर बिपिन झा ने पत्रिका के औचित्य एवं वैशिष्ट्य पर संक्षेप में प्रकाश डाला। विशिष्ट अतिथि डा० बनमाली बिस्वाल ने युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह पत्रिका संस्कृत के प्रचार प्रसार् हेतु हमें एकजुट करने मे सशक्त भूमिका निभाती है। कार्यक्रम के अन्त में स्वामी धरणीधरानन्दजी ने भगवती जाह्नवी के स्तोत्र की संगीतमय पाठ देवि सुरेश्वरि प्रस्तुत की।। इस अवसर पर आशुतोष, विकास, आकाश आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन धनंजय झा ने किया। धन्यवादाः |
विशेष | मीडिया डेस्क | मंगलवार , 07 सितम्बर 2010 | |||||||||||
हिन्दी, साहित्य, नवसर्जन के लिये समर्पित ’सम्भाव्य’ {International Research Journal of Indian Cultural, Social and Educational Stream Sambhavya (A Refereed Journal, Published Bi Monthly) (Reg. No. : 653/2010-11 तथा ISSN 0976-9358 } का द्वितीय अंक बिपिन कुमार झा (CISTS, IIT Bombay) के सहसम्पादकत्त्व में शीघ्र ही प्रकाशित किया जा रहा है। इस पत्रिका के सम्पादक डॉ. वी.आर पाण्डेय हैं। यह पत्रिका मूलरूप से राष्ट्रभाषा में प्रकाशित की जाती है। लेखक ’संभाव्य‘ के जुलाई से सितम्बर अंक में प्रकाशनार्थ अपना शोध-पत्र सीडी में एक पासपोर्ट साईज की फोटो के साथ संपादकीय कार्यालय में अथवा ई-मेल पर भेज सकते हैं। लेखक शोध-पत्र के अन्त में अपना वर्तमान पता व मोबाईल नंबर अवश्य अंकित करें। इच्छुक लेखक पत्रिका के जुलाई से सितम्बर अंक में प्रकाशनार्थ अपना शोध-पत्र दिनांक 28.09.2010 तक भेज सकते हैं। विशेषज्ञ समिति द्वारा चयनित केवल स्तरीय शोध-पत्रों को ही प्रकाशित किया जायेगा। विस्तृत जानकारी हेतु सम्पर्क करें: मोबाईल नंबर 9757 413 505/ 09889 182 448 E-mail jahnavisanskritjournal@gmail.com संपादकीय कार्यालय: बी 1/148सी-2-बी, अस्सी, वाराणसी-221005 (उ.प्र.) http://sarasvat-niketanam-varshankjvinisa.blogspot.com/ Jahnavi Sanskrit E-Journal http://www.jahnavisanskritejournal.com/ http://sanskritam.ning.com/ |
संस्कृत इ जर्नल का लोकार्पण |
खबरें | मीडिया डेस्क | गुरुवार , 19 अगस्त 2010 | |
भारत सरकार के पूर्व शिक्षाविद सदस्य डॉ. सदानन्द झा के मुख्य सम्पादकत्व में IIT मुम्बई के शोधछात्र बिपिन कुमार झा द्वारा प्रकाशित सारस्वत निकेतनम् (Home of Sanskrit lovers) के जाह्नवी संस्कृत ई जर्नल के तृतीय अंक वर्षांक का लोकार्पण मिथिला पावनधाम में संस्कृत साहित्य के प्रख्यात विद्वान एवं अनेक ग्रन्थों के रचयिता, सरिसबपाही कालेज के पूर्वप्राचार्य डॉ. रामजी ठाकुर ने किया। डॉ. ठाकुर ने अन्तर्जाल के माध्यम से ई जर्नल www.jahnavisanskritejournal.com को क्लिक कर तृतीयांक “वर्षांक” को जनसमर्पित किया। इस लोकार्पण कार्यक्रम में क्षेत्र की कई सम्मानित विभुतियाँ उपस्थित थी। पूर्व प्राचार्य डॉ. मिहिर ठाकुर की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में डॉ. हरिशंकर मणि त्रिपाठी, डा० रमेश कुमार झा, डा० महाकान्त ठाकुर थे। इसके अतिरिक्त वक्ताओं में डॉ. सदानन्द झा, डा० अभयधारी सिंह, डा० सुधीर कुमार झा, बिपिन झा, डॉ. गिरिश झा आदि ने भी पत्रिका के महत्त्व पर विशद रूप से प्रकाश डाला। संचालन साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान डॉ. राघव झा ने किया। सभा के मुख्य अतिथि डॉ. केदार नाथ झा (हर्षपति सिंह महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य) थे। |
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http://hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=12323&Itemid=206
ई जर्नल से जुड़ेगा रायपुर का संस्कृत कॉलेज |
भारत-गौरव | Written by अमनेश दुबे | मंगलवार , 27 जुलाई 2010 | |
संस्कृत को जनभाषा बनाने के लिए सूचना क्रांति के इस युग में विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में राजधानी स्थित संस्कृत कॉलेज ने भी पहल शुरू कर दी है। अब यहां के छात्रों के साथ ही प्राध्यापक भी संस्कृत ब्लॉगिंग और ऑनलाइन जर्नल में अपने लेख और विचार भेजेंगे। हिंदी और अंग्रेजी में संप्रभुता को लेकर छिड़ी जंग के बीच संस्कृत को जनभाषा बनाने की बात कहां तक सफल होगी? यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन आईआईटी मुंबई के छात्र बिपिन कुमार झा ने कुछ अलग ही करने की ठान रखी है। श्री झा ने कहा कि वे राजधानी के संस्कृत कॉलेज के छात्रों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं। संस्कृत कॉलेज भी उनका साथ देने के लिए तैयार है। कुछ माह पहले ही संस्कृत में ब्लॉगिंग शुरू करने के बाद श्री झा ऑनलाइन जर्नल ‘जाह्नवी’ का भी प्रकाशन कर चुके हैं। इस त्रैमासिक पत्रिका के प्रधान संपादक पूर्व शिक्षाविद् डॉ. सदानंद झा हैं। इसमें आस्ट्रेलिया के भाषाविद् प्रो. पोटा भी सहयोग दे रहे हैं। इसके अलावा सहायक संपादको एवं संरक्षकों में देश-विदेश के संकायाध्यक्षों, प्रोफेसरों व शोध छात्र शामिल हैं। देश-विदेश के विद्वानों को जोड़ेंगे : संस्कृत कॉलेज की प्राचार्या मुक्ति मिश्रा ने इसकी सराहना करते हुए कहा कि संस्कृत के लिए इस तरह का प्रयास पूरे देश में होना चाहिए। कॉलेज में चल रही परीक्षाओं के बाद उन्होंने श्री झा को कॉलेज बुलाने की बात कही। श्री झा ने भी माना कि रायपुर के संस्कृत कॉलेज से जुड़कर वे अपने उद्देश्य को बेहतर राह दिखा सकते हैं। वे सबसे पहले संस्कृत कॉलेजों को अपने साथ जोड़ेंगे। उन्होंने कहा, इसके बाद ही वे देश-विदेश के अन्य कॉलेजों के छात्रों की ओर अपना रुख करेंगे। संस्कृत कॉलेज के सभी प्राध्यापकों ने इस पहल की सराहना की है। कॉलेज में छात्र संघ के अध्यक्ष नीलेश शर्मा ने कहा कि कोई तो है जो संस्कृत के विकास के लिए आगे आया। सूचना-तकनीक के इस युग में संस्कृत को भी ऑनलाइन पढ़ने-लिखने पर निश्चित तौर से इसका विकास होगा। साभार-दैनिक भास्कर से |
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http://www.bhaskar.com/2010/03/15/100315083757_sanskrit_college.html
ई-जर्नल से जुड़ेगा शहर का संस्कृत कॉलेज
अमनेश दुबे
संस्कृत को जनभाषा बनाने के लिए सूचना क्रांति के इस युग में विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में राजधानी स्थित संस्कृत कॉलेज ने भी पहल शुरू कर दी है। अब यहां के छात्रों के साथ ही प्राध्यापक भी संस्कृत ब्लॉगिंग और ऑनलाइन जर्नल में अपने लेख और विचार भेजेंगे।
हिंदी और अंग्रेजी में संप्रभुता को लेकर छिड़ी जंग के बीच संस्कृत को जनभाषा बनाने की बात कहां तक सफल होगी? यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन आईआईटी मुंबई के स्टूडेंट बिपिन कुमार झा ने कुछ अलग ही करने की ठान रखी है। सिटी भास्कर से विशेष बातचीत में श्री झा ने कहा कि वे राजधानी के संस्कृत कॉलेज के छात्रों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं। संस्कृत कॉलेज भी उनका साथ देने के लिए तैयार है। कुछ माह पहले ही संस्कृत में ब्लॉगिंग शुरू करने के बाद श्री झा ऑनलाइन जर्नल ‘जाह्नवी’ का भी प्रकाशन कर चुके हैं।
इस त्रैमासिक पत्रिका के प्रधान संपादक पूर्व शिक्षाविद् डॉ. सदानंद झा हैं। इसमें आस्ट्रेलिया के भाषाविद् प्रो. पोटा भी सहयोग दे रहे हैं। इसके अलावा सहायक संपादको एवं संरक्षकों में देश-विदेश के संकायाध्यक्षों, प्रोफेसरों व शोध छात्र शामिल हैं।
देश-विदेश के विद्वानों को जोड़ेंगे : संस्कृत कॉलेज की प्राचार्या मुक्ति मिश्रा ने इसकी सराहना करते हुए कहा कि संस्कृत के लिए इस तरह का प्रयास पूरे देश में होना चाहिए। कॉलेज में चल रही परीक्षाओं के बाद उन्होंने श्री झा को कॉलेज बुलाने की बात कही। श्री झा ने भी माना कि रायपुर के संस्कृत कॉलेज से जुड़कर वे अपने उद्देश्य को बेहतर राह दिखा सकते हैं। वे सबसे पहले संस्कृत कॉलेजों को अपने साथ जोड़ेंगे। उन्होंने कहा, इसके बाद ही वे देश-विदेश के अन्य कॉलेजों के छात्रों की ओर अपना रुख करेंगे। संस्कृत कॉलेज के सभी प्राध्यापकों ने इस पहल की सराहना की है। कॉलेज में छात्र संघ के अध्यक्ष नीलेश शर्मा ने कहा कि कोई तो है जो संस्कृत के विकास के लिए आगे आया। सूचना-तकनीक के इस युग में संस्कृत को भी ऑनलाइन पढ़ने-लिखने पर निश्चित तौर से इसका विकास होगा।
यह है उद्देश्य: ऑनलाइन पत्रिका के प्रकाशन के पीछे संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार का उद्देश्य है। जाह्नवी पत्रिका में संस्कृत की वैकल्पिक भाषाओं के तौर पर अंग्रेजी और हिंदी का भी प्रयोग समझने के लिए किया गया है। इससे नए लोगों को अपनी अभिव्यक्ति के लिए एक प्लेटफार्म मिलेगा। देश में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो संस्कृत के विकास के लिए कुछ करना चाहते हैं, लेकिन चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते। ऐसे में संस्कृत ब्लॉगिंग और ई-जर्नल ने कुछ आस जगाने का काम किया है।
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हिंदी और अंग्रेजी में संप्रभुता को लेकर छिड़ी जंग के बीच संस्कृत को जनभाषा बनाने की बात कहां तक सफल होगी? यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन आईआईटी मुंबई के स्टूडेंट बिपिन कुमार झा ने कुछ अलग ही करने की ठान रखी है। सिटी भास्कर से विशेष बातचीत में श्री झा ने कहा कि वे राजधानी के संस्कृत कॉलेज के छात्रों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं। संस्कृत कॉलेज भी उनका साथ देने के लिए तैयार है। कुछ माह पहले ही संस्कृत में ब्लॉगिंग शुरू करने के बाद श्री झा ऑनलाइन जर्नल ‘जाह्नवी’ का भी प्रकाशन कर चुके हैं।
इस त्रैमासिक पत्रिका के प्रधान संपादक पूर्व शिक्षाविद् डॉ. सदानंद झा हैं। इसमें आस्ट्रेलिया के भाषाविद् प्रो. पोटा भी सहयोग दे रहे हैं। इसके अलावा सहायक संपादको एवं संरक्षकों में देश-विदेश के संकायाध्यक्षों, प्रोफेसरों व शोध छात्र शामिल हैं।
देश-विदेश के विद्वानों को जोड़ेंगे : संस्कृत कॉलेज की प्राचार्या मुक्ति मिश्रा ने इसकी सराहना करते हुए कहा कि संस्कृत के लिए इस तरह का प्रयास पूरे देश में होना चाहिए। कॉलेज में चल रही परीक्षाओं के बाद उन्होंने श्री झा को कॉलेज बुलाने की बात कही। श्री झा ने भी माना कि रायपुर के संस्कृत कॉलेज से जुड़कर वे अपने उद्देश्य को बेहतर राह दिखा सकते हैं। वे सबसे पहले संस्कृत कॉलेजों को अपने साथ जोड़ेंगे। उन्होंने कहा, इसके बाद ही वे देश-विदेश के अन्य कॉलेजों के छात्रों की ओर अपना रुख करेंगे। संस्कृत कॉलेज के सभी प्राध्यापकों ने इस पहल की सराहना की है। कॉलेज में छात्र संघ के अध्यक्ष नीलेश शर्मा ने कहा कि कोई तो है जो संस्कृत के विकास के लिए आगे आया। सूचना-तकनीक के इस युग में संस्कृत को भी ऑनलाइन पढ़ने-लिखने पर निश्चित तौर से इसका विकास होगा।
यह है उद्देश्य: ऑनलाइन पत्रिका के प्रकाशन के पीछे संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार का उद्देश्य है। जाह्नवी पत्रिका में संस्कृत की वैकल्पिक भाषाओं के तौर पर अंग्रेजी और हिंदी का भी प्रयोग समझने के लिए किया गया है। इससे नए लोगों को अपनी अभिव्यक्ति के लिए एक प्लेटफार्म मिलेगा। देश में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो संस्कृत के विकास के लिए कुछ करना चाहते हैं, लेकिन चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते। ऐसे में संस्कृत ब्लॉगिंग और ई-जर्नल ने कुछ आस जगाने का काम किया है।
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