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विशेष | बिपिन कुमार झा | मंगलवार , 14 सितम्बर 2010 | |
यह बात स्वतः सिद्ध है कि राष्ट्रभाषा हिन्दी जनमानस को आप्लावित करती हुई गंगा की अविरल धारा के समान बहती रही है और हिन्दी भाषा-भाषियों के अन्तस्तल को झंकृत करती रही है। हिन्दी न केवल किताबी भाषा रही है अपितु इन सीमाओं को लांघकर आज कार्पोरेट जगत में भी धाक जमा चुकी है इसकी पुष्टि भी की जा सकती है- एल.जी कम्पनी अपने उत्पादों की मार्गदर्शिका हिन्दी मे भी छपवाती है। अन्य कम्पनियाँ भी इसका अनुसरण कर रही है। बैंकिंग एवं बीमा कम्पनियों की बात करें तो उदाहरण के लिये आई सी आई सी आई की बात कर सकते हैं जो ग्राहकों से हिन्दी में प्राप्त शिकायतों का उत्तर हिन्दी में ही देता है। बेस्ट (मुम्बई का परिवहन उपक्रम) भी ऐसा ही करता है। बीमा कम्पनियों में भारतीय जीवनबीमा सहित अन्य लगभग सभी बडी बीमा कम्पनी हिन्दी प्रयोग कर रही है। उद्योगपतियों की बात करें तो विश्व के बडे उद्योगपति भी दैनन्दिन व्यवहार हिन्दी में ही करते हैं। इन सबके बाबजूद हिन्दी की दशा किसी से छुपी नहीं है। एक व्यक्ति भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे संस्था के एक कार्यालय में राष्ट्रभाषा में पत्र सौंपता है वहां यह कह कर उसे लौटाया जाता है कि हिन्दी शब्दों का अंग्रेजी में अनुवाद करके प्रस्तुत करने पर ही अर्जी स्वीकार्य है। इस प्रत्यक्ष घटना को देखकर मैं स्तब्ध रह गया। क्या राष्ट्रभाषा के रूप में विद्यमान हिन्दी की ये दशा!! यहाँ किसी अन्यभाषा की उपेक्षा का भाव न समझा जाए किन्तु हिन्दी को समुचित आदर तो देनी होगी। कहाँ नेहरू वैज्ञानिक शब्दावली में आंग्ल के साथ हिन्दी भाषा की साझेदारी की बात करते थे कहाँ बंगबन्धु बंकिमचन्द्र भारतबन्धु होने के लिये हिन्दी में लेखन की अनिवार्यता समझते थे और कहाँ आज हिन्दी को औपचारिक कुर्सी दे दी गयी है!! ध्यातव्य है कि आज जैसे हिन्दी हिन्ग्लिश का रूप ले रही है वैसे ही आंग्रेजी ग्लोबिश का रूप ले रही है। संस्कृत भी ’कलम’ जैसे उर्दू शब्द को आत्मसात करने मे उदारता दिखाई अस्तु हिन्दी की उन्नति हेतु विविध भाषाओं से शब्दों को स्वीकृत किया जाना चाहिये। वैज्ञानिक शब्दावली में आंग्ल के साथ हिन्दी भाषा की साझेदारी होनी चाहिये। सबसे जो महत्त्वपूर्ण है वह है- हिन्दी के प्रति गर्व होना चाहिये। निज भाषा की उन्नति अहै सब भाषा को मूल। हिन्दी की उन्नति हेतु हिन्दी की ओर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है। हिन्दी प्रेमियों द्वारा बहुत कुछ किया जा रहा है हिदी के उत्थान के लिये किन्तु आज भी कहीं न कहीं कमी अवश्य है जिस कारण हिन्दी के नाम पर सम्पूर्ण भारत कदाचित दिल से स्वयं को अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा है। {लेखक बिपिन कुमार झा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुम्बई में पी. एच. डी (विद्यावारिधि) शोधरत हैं। आपकी टिप्पणी kumarvipin.jha@gmail.com पर सादर आमन्त्रित है।} |
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